Noida news : एमिटी विश्वविद्यालय में विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस पर विशेषज्ञों ने साझा किये विचार
Noida news : विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस पर छात्रों को सिज़ोफ्रेनिया रोग व इलाज के प्रति जागरूक करने के लिए एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ बिहेवियरल (हैल्थ) एंड एलाइड साइंसेस द्वारा ‘‘ सामुदायिक दयालुता की शक्ति का उत्सव’’ विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा सत्र का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा सत्र में बैगलोर के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थय और स्नायु विज्ञान संस्थान के नैदानिक मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा देवव्रत कुमार, चंडीगढ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के मनचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा रंजीत आर पिल्लै, चंडीगढ़ के गर्वरमेंट मेडिकल कॉलेज व हॉस्पीटल की मनचिकित्सा विभाग की सहायक प्रोफेसर डा शिखा त्यागी, एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ बिहेवियरल (हैल्थ) एंड एलाइड साइंसेस की सहायक प्रोफेसर सुश्री सोनिया ने अपने विचार रखे। परिचर्चा सत्रा का संचालन एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ बिहेवियरल (हैल्थ) एंड एलाइड साइंसेस की निदेशक डा रूशी द्वारा किया गया।
परिचर्चा सत्र में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थय और स्नायु विज्ञान संस्थान के नैदानिक मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा देवव्रत कुमार ने कहा कि एक सहयोगी समाज सिज़ोफ्रेनिया के रोगियों के स्वस्थ होने में सहायता करने का मुख्य आधार है। अगर मरीज को सहयोगी वातावरण प्राप्त होता है तो वह समाज के विकास में योगदान दे सकता है। डा कुमार ने कहा कि जब अन्य रोगों के मरीजो ंसे भेदभाव नही होता तो सिज़ोफ्रेनिया जो कि एक मानसिक रोग है उनके मरीजो ंसे भी भेदभाव नही होना चाहिए। कई बार जब सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ीत व्यक्ति रोजगार के लिए जाता है तो उस पर की गई टिप्पणियां उसे अवसाद में डाल देती है। इस रोग मंे परिवार का बेहद महत्व होता है कई बार परिवार के व्यक्ति रोगी के मनोभाव को नही समझ सिज़ोफ्रेनिया के मरीज क्षमतावान होते है बस उन्हे लघुकालिक या दीर्घकालिक सहायता की आवश्यकता होती ।
चंडीगढ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के मनचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा रंजीत आर पिल्लै ने कहा कि सिज़ोफ्रेनिया के रोगी का पता लगना, यह परिवार के लोगों के एक सदमा होता है और उन्हे इसे अपनाने में समय लगता है। डा पिल्लै ने कहा कि एक मनोचिकित्सक का कार्य इस समय और जरूरी हो जाता है क्योकि सिज़ोफ्रेनिया के रोगी के जीवन में परिवार और देखरेख करने वालो की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। कई बार परिवारों के साथ कई प्रकार के मनोसमाजिक मुदद्े जुड़े होते है और कई बार परिवार के लोगो ंकी जानकारी या शिक्षा का आभाव होता है इसलिए उन्हे रोगी के साथ व्यवहार करने की जानकारी प्रदान करना जरूरी होता है।
चंडीगढ़ के गर्वरमेंट मेडिकल कॉलेज व हॉस्पीटल की मनचिकित्सा विभाग की सहायक प्रोफेसर डा शिखा त्यागी ने कहा कि सिज़ोफ्रेनिया 20 से 29 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है जिस समय व्यक्ति अपने कैरियर निर्माण के महत्वपूर्ण मुकाम पर होता है, ऐसे में परिवार की अपेक्षाये भी जुड़ी होती है जो उन्हे अपूर्ण होती दिखती है। डा त्यागी ने कहा कि कई बार सिज़ोफ्रेनिया के रोगी की देखभाल करते व्यक्ति निराश, थकान, स्वंय पर ध्यान ना दे पाने, अस्वस्थता, पारिवारिक कलह आदि से ग्रसित हो जाता है उन्होने इसके उपायों को बताते हुए सहयोगी उपकरणों की सहायता, रोगी की गतिविधियों के चार्ट का निर्माण और परिवार के लोगों द्वारा कार्य को बांटने सहित की जानकारी दी। डा त्यागी ने कहा कि दो दृष्टिकोण आत्मसात किये जाते है जिसें प्रथम रोगी की सहायता करना और द्वितीय परिवार या देखभाल करने वाले को सहयोग करना।
एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ बिहेवियरल (हैल्थ) एंड एलाइड साइंसेस की निदेशक डा रूशी ने कहा कि विश्व स्वास्थय संगठन ने सिज़ोफ्रेनिया को युवाओ ंकी क्षमता का नाश करने वाली बीमारी बताया है। आज विश्व में लगभग 21 मिलियन लोग इस रोग से ग्रसित है और लगभग 5 से 6 मिलियन लोग भारत में ग्रसित है। सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक स्थिति है जो मस्तिष्क के सामान्य कामकाज को प्रभावित करता है और कई बार जिम्मेदारियां संभालने में असक्षम रहता है। छात्रों को इसके इलाज के क्षेत्र में हो रही प्रगति की जानकारी देने और इसके संबध में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए इस परिचर्चा सत्र का आयोजन किया गया।
इस परिचर्चा सत्र में एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ बिहेवियरल (हैल्थ) एंड एलाइड साइंसेस के मार्गदर्शक डा एस के श्रीवास्तव सहित शिक्षक और छात्र भी उपस्थित थे।